भारत भूषण का जन्म उत्तरप्रदेश के मेरठ में हुआ था। इन्होंने हिन्दी में स्नातकोत्तर शिक्षा अर्जित की और प्राध्यापन को जीविकावृत्ति के रूप में अपनाया। एक शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले भारत भूषण बाद में काव्य की दुनिया में आए और छा गए। उनकी सैकडों कविताओं व गीतों में सबसे चर्चित 'राम की जलसमाधि' रही।
जन्म :2 अगस्त 1919 | मथुरा, उत्तर प्रदेश
निधन :23 जून 1975 | शिमला, हिमाचल प्रदेश
तार सप्तक’ के कवि भारतभूषण अग्रवाल का जन्म 3 अगस्त, 1919 को तुलसी-जयंती के दिन उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले के सतघड़ा मोहल्ले में हुआ। उन्होंने आरंभिक शिक्षा मथुरा और चंदौसी में पाई, फिर उच्च शिक्षा आगरा और दिल्ली में पूरी की। 1941 में नौकरी की तलाश में कलकत्ता गए जहाँ पहले एक कारख़ाने में काम किया फिर व्यावसायिक-औद्योगिक संस्थानों में उच्चपदस्थ कर्मचारी बने। बाद में इलाहाबाद की ‘प्रतीक’ पत्रिका से संबद्ध हुए और 1948-59 तक आकाशवाणी में कार्यक्रम अधिकारी रहे। इसके उपरांत 1960-74 तक साहित्य अकादेमी, दिल्ली के उपसचिव के रूप में कार्य किया। 1975 में शिमला के उच्चतर अध्ययन संस्थान से विज़िटिंग फ़ेलो के रूप में संबद्ध हुए और यहीं 23 जून 1975 को उनका निधन हो गया।
वह बचपन से ही काव्य-कला में प्रवीण होने लगे थे और साहित्यिक गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे। उनका पहला काव्य-संग्रह 'छवि के बंधन' 1941 में और दूसरा काव्य-संग्रह ‘जागते रहो’ 1942 में प्रकाशित हुआ। 1943 में प्रकाशित 'तारसप्तक' में सात नए महत्त्पूर्ण युवा कवियों में से एक के रूप में उन्हें शामिल किया गया। ‘ओ अप्रस्तुत मन’ (1958), ‘अनुपस्थित लोग’ (1965), ‘एक उठा हुआ हाथ’ (1976), ‘उतना वह सूरज है’ (1977), ‘बहुत बाक़ी है’ (1978) उनके अन्य काव्य-संग्रह है। हास्य-व्यंग्य, लघुमानव की प्रतिष्ठा, यथार्थ के प्रति आग्रह, क्षणबोध, मध्यमवर्गीय संघर्ष, नियति के प्रति विद्रोह आदि उनकी कविता का मूल स्वर है। कवि लीअर के लिमेरिक से प्रभावित होकर उन्होंने तुक्तकों की भी रचना की जिसका संग्रह ‘काग़ज़ के फूल’ में हुआ है। अरुण कमल ने उन्हें नगरीय जीवन का पहला सजग कवि कहा है।
कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने गद्य विधा में भी योगदान किया है। ‘सेतुबंधन’, ‘अग्निलीक’, ‘और खाई बढ़ती गई’ उनके प्रमुख नाट्य संग्रह हैं। ‘लौटती लहरों की बाँसुरी’ उनका उपन्यास है और उनकी कहानियों का संकलन ‘आधे-आधे जिस्म’ शीर्षक से प्रकाशित है। ‘प्रसंगवश’ में आलोचनात्मक लेख, ‘कवि की दृष्टि’ में निबंध और ‘लीक-अलीक’ में ललित-निबंधों का संकलन है। उनकी संपूर्ण रचनाओं का प्रकाशन उनकी धर्मपत्नी बिंदु अग्रवाल के संपादन में ‘भारतभूषण अग्रवाल रचनावली’ के चार खंडों में किया गया है।
‘उतना वह सूरज है’ काव्य-संग्रह के लिए उन्हें 1978 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी स्मृति में प्रति वर्ष युवा कविता का चर्चित और विवादित ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।
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