Friday, 30 June 2023

WELCOME BACK TO SCHOOL

My Dear Students, We’re so happy to have you back. We’ve missed your laughter, your energy, and your enthusiasm. But now it’s time to buckle up and prepare for an exciting new journey together. And remember, we are here for you, every step of the way.

So, let’s step into this new school year with a big smile, full of curiosity, ready to learn and grow together. Are you ready, kids? Let’s make this a fantastic year! Welcome back to school!

Remember, kids, every day is a good day for learning and having fun. Let’s do both together this year. Here’s to an exciting new school year!


 

Wednesday, 21 June 2023

स्वास्थ्य और व्यायाम


उत्तम दिन में स्वास्थ्य धन सब कुछ उसमें होए।
बिना स्वास्थ्य संसार में सब कुछ जाता खोए।
स्वास्थ्य संसार की हर संपत्ति ,शक्ति और वरदान से बड़ा है अस्वस्थ व्यक्ति ना पढ़ -लिख सकता है, न धन कमा सकता है, न किसी की सहायता कर सकता है और न ही ठीक से खा- पी सकता है। और तो और वह ठीक से घूम फिर भी नहीं सकता।
जैसा कि रूसो ने कहा है-
'शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है'
संसार की सारे आनंद और सुख स्वस्थ व्यक्ति ही भोग सकते हैं। रोगों से तड़पता व्यक्ति कितना भी धनवान या विद्वान क्यों ना हो, वह हर समय मे व्याकुल रहता है ।जबकि स्वस्थ व्यक्ति सूखी -सूखी खाकर भी शांति के साथ सोता है।
इसका दूसरा पहलू है  योग (व्यायाम)
योग को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे प्राणायान, योग, योग भी कहते हैं। योग योग की एक शाखा है। जहां बैठकर या बैठकर योगाभ्यास किया जाता है। एक आध्यात्मिक प्रक्रिया जहां शरीर, मन और आत्मा संयुक्त होते हैं (योग)) यह शब्द हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान की प्रक्रिया से संबंधित है।

योग एक संस्कृत शब्द है जो युज से आया है, जिसका अर्थ है इकट्ठा होना, बांधना। योग अब चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका के साथ-साथ भारत से बौद्ध धर्म में फैल गया है, और इस समय पूरे सभ्य दुनिया में लोग इससे परिचित हैं।

योग व्यायाम के लाभ:

योग करने के कई फायदे हैं।।

स्वास्थ्य सर्वे संसार की हर संपत्ति, शक्ति और वरदान से बड़ा है। अस्वस्थ व्यक्ति ना पढ़ लिख सकता है ना धन कमा सकता है ना किसी की सहायता कर सकता है और ना ही ठीक से खा -पी सकता है। और तो और वह ठीक से घूम फिर भी नहीं सकता। जैसा कि रूसो ने कहा था



'स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।'

स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मस्तिष्क के लिए योगा का महत्वपूर्ण स्थान है। योग (संस्कृत: योगः ) एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसमें शरीर और आत्मा ( ध्यान ) को एकरूप करना ही योग कहलाता है। मन को शब्दों से मुक्त करके अपने आपको शांति और रिक्तता से जोडने का एक तरीका है योग। योग समझने से ज्यादा करने की विधि है। योग साधने से पहले योग के बारे में जानना बहुत जरुरी है। जैसे प्राणायाम और ध्यानयोग को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे प्राणायान, योग, योग भी कहते हैं। योग योग की एक शाखा है। जहां बैठकर या बैठकर योगाभ्यास किया जाता है। एक आध्यात्मिक प्रक्रिया जहां शरीर, मन और आत्मा संयुक्त होते हैं (योग)) यह शब्द हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म में ध्यान की प्रक्रिया से संबंधित है।

योग व्यायाम के लाभ:
स्वस्थ रहने के लिए मनुष्य को सूर्योदय से एक डेढ़ घंटे पहले ही बिस्तर छोड़ देना चाहिए। कुछ देर के लिए किसी खुले उपवन में टहलना चाहिए और कुछ शारीरिक व्यायाम अथवा योगासन करने चाहिए। कि ने किसी खेल में रुचि है, उन्हें कम से कम एक घंटा खेल खेल लेना चाहिए। इससे शरीर के सारे अंग मजबूत और चुस्त बनते हैं।

स्वास्थ्य के लिए अच्छी नींद भी आवश्यक है जिसे अच्छी नींद नहीं आती उसका स्वास्थ्य कभी ठीक नहीं रहता जो सुख की नींद सोता है और उसे क्या चाहिए यह सब कुछ संभव है योगासन के माध्यम से।

Saturday, 17 June 2023

आत्मविश्वास

 आत्मविश्वास मानव का अभिन्न अंग है। आत्मविश्वास मानव -चरित्र का मौलिक तथा उसके जीवन पद का प्रबल संभल है ।यह गुण मनुष्य को घर -परिवार और समाज के संस्कार से मिलते हैं तथा शिक्षण- अभ्यास  से ही विकसित होता है। जो आत्मविश्वास का अलख जगाकर  जीवन के मार्ग पर बढ़ता है, उसके समक्ष आपदाओं के पर्वत ढह जाते हैं और मंजिल सदा उसकी प्रतीक्षा करती रहती है। जिसकी सभी को आवश्यकता रहती है क्योंकि जिसके पास आत्मविश्वास का बल है, वह पराजय के क्षणों में विचलित नहीं होता, बल्कि नए संकल्प में उत्साह से आगे बढ़कर अंततः विजय प्राप्त करता है। वस्तुत: आत्मविश्वास के अंकुर से प्रयत्न का पौधा उगता हैं और प्रयत्न के  लहलहाते पौधे पर ही सफलता के मधुर फल लगते हैं किसी ने ठीक ही कहा है- 

मुर्दा वह नहीं जो मर गया मुर्दा हुआ है,

जिसका आत्मविश्वास मर गया है!

इसका दूसरा पहलू है 'साहस' साहसिकता  और वीर पुरुष का लक्षण है। वही सच्चे अर्थ में जीते हैं जो साहस पूर्वक कर्म करते हैं‌। वही सच्चे अर्थ में बढ़ते रहते हैं कुछ लोग समय को अपने अनुकूल ढालकर विजय श्री का वरण करते हैं। संसार का इतिहास उन्हीं लोगों के नामों से प्रकाशित है, जिन्होंने  समय की छाती पर अपना साहस की मुहर लगाई है। जो छिपकर या डर कर रह रहे वह काल की अंधेरी गुफाओं में गुम हो गए हैं। जिंदगी दिल दारो की है ,बुजदिल ओ की नहीं - 'जिंदगी जिंदादिली का नाम है, बल्कि आत्मशक्ति का नाम है। जब वह शक्ति जगाती है अभी संसार में हलचल होती है और कुछ नया उभर कर आता है ।बड़े-बड़े लोगों का बलिदान मानव के साहस की अमर निशानियां  हैं।

जो हिम्मत करता है इसलिए उसका साथ देता है- 'हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा।'वैसे हमारे जीवन यापन को सुचारू रूप से चलाने के लिए आत्मविश्वास ,साहस तथा जुझारू प्रवृत्ति का होना अति आवश्यक है।




Friday, 9 June 2023

लेखक परिचय भारत भूषण

 



भारत भूषण का जन्म उत्तरप्रदेश के मेरठ में हुआ था। इन्होंने हिन्दी में स्नातकोत्तर शिक्षा अर्जित की और प्राध्यापन को जीविकावृत्ति के रूप में अपनाया। एक शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले भारत भूषण बाद में काव्य की दुनिया में आए और छा गए। उनकी सैकडों कविताओं व गीतों में सबसे चर्चित 'राम की जलसमाधि' रही।

जन्म :2 अगस्त 1919 | मथुरा, उत्तर प्रदेश

निधन :23 जून 1975 | शिमला, हिमाचल प्रदेश

तार सप्तक’ के कवि भारतभूषण अग्रवाल का जन्म 3 अगस्त, 1919 को तुलसी-जयंती के दिन उत्तर प्रदेश के मथुरा ज़िले के सतघड़ा मोहल्ले में हुआ। उन्होंने आरंभिक शिक्षा मथुरा और चंदौसी में पाई, फिर उच्च शिक्षा आगरा और दिल्ली में पूरी की। 1941 में नौकरी की तलाश में कलकत्ता गए जहाँ पहले एक कारख़ाने में काम किया फिर व्यावसायिक-औद्योगिक संस्थानों में उच्चपदस्थ कर्मचारी बने। बाद में इलाहाबाद की ‘प्रतीक’ पत्रिका से संबद्ध हुए और 1948-59 तक आकाशवाणी में कार्यक्रम अधिकारी रहे। इसके उपरांत 1960-74 तक साहित्य अकादेमी, दिल्ली के उपसचिव के रूप में कार्य किया। 1975 में शिमला के उच्चतर अध्ययन संस्थान से विज़िटिंग फ़ेलो के रूप में संबद्ध हुए और यहीं 23 जून 1975 को उनका निधन हो गया। 

वह बचपन से ही काव्य-कला में प्रवीण होने लगे थे और साहित्यिक गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे। उनका पहला काव्य-संग्रह 'छवि के बंधन' 1941 में और दूसरा काव्य-संग्रह ‘जागते रहो’ 1942 में प्रकाशित हुआ। 1943 में प्रकाशित 'तारसप्तक' में सात नए महत्त्पूर्ण युवा कवियों में से एक के रूप में उन्हें शामिल किया गया। ‘ओ अप्रस्तुत मन’ (1958), ‘अनुपस्थित लोग’ (1965), ‘एक उठा हुआ हाथ’ (1976), ‘उतना वह सूरज है’ (1977), ‘बहुत बाक़ी है’ (1978) उनके अन्य काव्य-संग्रह है। हास्य-व्यंग्य, लघुमानव की प्रतिष्ठा, यथार्थ के प्रति आग्रह, क्षणबोध, मध्यमवर्गीय संघर्ष, नियति के प्रति विद्रोह आदि उनकी कविता का मूल स्वर है। कवि लीअर के लिमेरिक से प्रभावित होकर उन्होंने तुक्तकों की भी रचना की जिसका संग्रह ‘काग़ज़ के फूल’ में हुआ है। अरुण कमल ने उन्हें नगरीय जीवन का पहला सजग कवि कहा है।  

कविताओं के अतिरिक्त उन्होंने गद्य विधा में भी योगदान किया है। ‘सेतुबंधन’, ‘अग्निलीक’, ‘और खाई बढ़ती गई’ उनके प्रमुख नाट्य संग्रह हैं। ‘लौटती लहरों की बाँसुरी’ उनका उपन्यास है और उनकी कहानियों का संकलन ‘आधे-आधे जिस्म’ शीर्षक से प्रकाशित है। ‘प्रसंगवश’ में आलोचनात्मक लेख, ‘कवि की दृष्टि’ में निबंध और ‘लीक-अलीक’ में ललित-निबंधों का संकलन है। उनकी संपूर्ण रचनाओं का प्रकाशन उनकी धर्मपत्नी बिंदु अग्रवाल के संपादन में ‘भारतभूषण अग्रवाल रचनावली’ के चार खंडों में किया गया है। 

‘उतना वह सूरज है’ काव्य-संग्रह के लिए उन्हें 1978 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी स्मृति में प्रति वर्ष युवा कविता का चर्चित और विवादित ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।    

































देवदार का पेड़

देओदार (देवदार) एक सीधे तने वाला ऊँचा शंकुधारी पेड़ है, जिसके पत्ते लंबे और कुछ गोलाई लिये होते हैं तथा जिसकी लकड़ी मजबूत किन्तु हल्की और सुगंधित होती है। इनके शंकु का आकार सनोबर (फ़र) से काफी मिलता-जुलता होता है। इनका मूलस्थान पश्चिमी हिमालय के पर्वतों तथा भूमध्यसागरीय क्षेत्र में है, (१५००-३२०० मीटर तक हिमालय में तथा १०००-२००० मीटर तक भूमध्य सागरीय क्षेत्र में)। यह इमारतों में काम आती है। यह पश्चिमी हिमालय, पूर्वी अफगानिस्तान, उत्तरी पाकिस्तानउत्तर-मध्य भारत के हिमाचल प्रदेशउत्तराखंडजम्मू एवं कश्मीर तथा दक्षिण-पश्चिमी तिब्बत एवं पश्चिमी नेपाल में १५००-३२०० मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह एक शंकुधारी वृक्ष होता है, जिसकी ऊंचाई ४०-५० मी. तक और कभी-कभार ६० मी. तक होती है। इसके तने २ मीटर तक और खास वृक्षों में ३ मीटर तक के होते हैं।इसकी कुछ प्रजातियों को स्निग्धदारु और काष्ठदारु के नाम से भी जाना जाता है। स्निग्ध देवदारु की लकड़ी और तेल दवा बनाने के काम में भी आते हैं। इसके अन्य नामों में देवदारु प्रसिद्ध है। यह निचले पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है।