हिंदी दिवस
14 सितंबर भारत हमारी मातृभूमि है ,पितृ भूमि है, पुण्यभूमि है। हम इसी की कोख से उत्पन्न हुए । इसने हमारा पालन-पोषण किया ।इसके तीर्थ हमारी आस्था और श्रद्धा के केंद्र हैं। वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि में प्रतिपादित धन भारतीय धर्म है । प्रतिवर्ष 14 सितंबर को मनाए जाने वाला हिंदी दिवस हिंदी के राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने का गौरवपूर्ण दिन है ।हिंदी के प्रति निष्ठा व्यक्त करने का दिन है। विश्व भर में हिंदी चेतना जागृत करने का दिन है ।हिंदी की वर्तमान स्थिति का सिंहावलोकन कर उसकी प्रगति पर विचार करने का दिवस है।
हिंदी दिवस एक पर्व है। हिंदी के हक में प्रदर्शनी, मेले ,गोष्टी ,सम्मेलन तथा समारोह आयोजन का दिन है । हिंदी प्रयोग करने वालों को पुरस्कृत तथा सम्मानित करने का दिन है। सरकारी - अर्द्ध सरकारी कार्यालयों तथा बड़े उद्योग में हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़ा द्वारा हिंदी मोह प्रकट करने का दिवस है । संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया । संविधान के अनुच्छेद 343 में लिखा है संघ की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी और संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा , किंतु इस संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक उन सभी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा । जिसके लिए इसके लागू होने से तुरंत पूर्व होता था ।
प्रभु राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था और पांडवों को 12 वर्ष का और उनकी हिंदी को 15 वर्ष का वनवास मिला, पांडवों के वनवास के साथ 1 वर्षीय अज्ञात वास की शर्तें थी , उसी प्रकार हिंदी के साथ समृद्धि की शर्त थी। महाभारत के दुर्योधन ने हठ किया कि उसने पांडवों का अज्ञातवास में पहचान लिया है ,अतः उन्हें पुनर्वास दिया जाए, पर उसकी गलतफहमी को किसी ने स्वीकार नहीं किया ।स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी के 15 वर्षीय बनवासी काल में हिंदी को पहचान कर सन 1963 में राजभाषा अधिनियम में संशोधन करवा दिया । जब तक भारत का एक भी राज हिंदी का विरोध करेगा हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासन अरुण नहीं किया जाएगा । यह लोकतंत्र के मुंह पर तानाशाही का जोरदार तमाचा था ,जो मां भारती के चेहरे को आज भी कलंकित पीड़ित कर रहा है। किसी राजनीतिक मैं हिम्मत जो नेहरू का विरोध करता ? मां भारती के सच्चे सपूत कांग्रेसी सेठ गोविंद दास ने ही संसद में इस संशोधन विधेयक के विरोध में मत दिया ।
हिंदी दिवस पर मां भारती की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर ,धूप दीप जलाकर, उसका गुणगान और कीर्तन करके हम अपने को कृत कृत्य समझते हैं, पर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हेतु उसकी व्यवहारिक आरती उतारने के लिए दैनिक जीवन- शैली में अपनाने और शोध बनाने से हम कतराते हैं। जिस दिन ए चेतना भारत के जन्मदिन की आत्मा में जागेगी, उस दिन हिंदी की प्राण प्रतिष्ठा होगी, तभी हिंदी दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी ।
14 सितंबर भारत हमारी मातृभूमि है ,पितृ भूमि है, पुण्यभूमि है। हम इसी की कोख से उत्पन्न हुए । इसने हमारा पालन-पोषण किया ।इसके तीर्थ हमारी आस्था और श्रद्धा के केंद्र हैं। वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत आदि में प्रतिपादित धन भारतीय धर्म है । प्रतिवर्ष 14 सितंबर को मनाए जाने वाला हिंदी दिवस हिंदी के राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने का गौरवपूर्ण दिन है ।हिंदी के प्रति निष्ठा व्यक्त करने का दिन है। विश्व भर में हिंदी चेतना जागृत करने का दिन है ।हिंदी की वर्तमान स्थिति का सिंहावलोकन कर उसकी प्रगति पर विचार करने का दिवस है।
हिंदी दिवस एक पर्व है। हिंदी के हक में प्रदर्शनी, मेले ,गोष्टी ,सम्मेलन तथा समारोह आयोजन का दिन है । हिंदी प्रयोग करने वालों को पुरस्कृत तथा सम्मानित करने का दिन है। सरकारी - अर्द्ध सरकारी कार्यालयों तथा बड़े उद्योग में हिंदी सप्ताह और हिंदी पखवाड़ा द्वारा हिंदी मोह प्रकट करने का दिवस है । संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित किया । संविधान के अनुच्छेद 343 में लिखा है संघ की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी और संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा , किंतु इस संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक उन सभी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा । जिसके लिए इसके लागू होने से तुरंत पूर्व होता था ।
प्रभु राम को 14 वर्ष का वनवास हुआ था और पांडवों को 12 वर्ष का और उनकी हिंदी को 15 वर्ष का वनवास मिला, पांडवों के वनवास के साथ 1 वर्षीय अज्ञात वास की शर्तें थी , उसी प्रकार हिंदी के साथ समृद्धि की शर्त थी। महाभारत के दुर्योधन ने हठ किया कि उसने पांडवों का अज्ञातवास में पहचान लिया है ,अतः उन्हें पुनर्वास दिया जाए, पर उसकी गलतफहमी को किसी ने स्वीकार नहीं किया ।स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हिंदी के 15 वर्षीय बनवासी काल में हिंदी को पहचान कर सन 1963 में राजभाषा अधिनियम में संशोधन करवा दिया । जब तक भारत का एक भी राज हिंदी का विरोध करेगा हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासन अरुण नहीं किया जाएगा । यह लोकतंत्र के मुंह पर तानाशाही का जोरदार तमाचा था ,जो मां भारती के चेहरे को आज भी कलंकित पीड़ित कर रहा है। किसी राजनीतिक मैं हिम्मत जो नेहरू का विरोध करता ? मां भारती के सच्चे सपूत कांग्रेसी सेठ गोविंद दास ने ही संसद में इस संशोधन विधेयक के विरोध में मत दिया ।
हिंदी दिवस पर मां भारती की प्रतिमा पर फूल चढ़ाकर ,धूप दीप जलाकर, उसका गुणगान और कीर्तन करके हम अपने को कृत कृत्य समझते हैं, पर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हेतु उसकी व्यवहारिक आरती उतारने के लिए दैनिक जीवन- शैली में अपनाने और शोध बनाने से हम कतराते हैं। जिस दिन ए चेतना भारत के जन्मदिन की आत्मा में जागेगी, उस दिन हिंदी की प्राण प्रतिष्ठा होगी, तभी हिंदी दिवस की सार्थकता सिद्ध होगी ।
No comments:
Post a Comment