वाचन कौशल के उद्देश्य
अपने भावों, विचारों, अनुभवों को सरलतापूर्वक, स्पष्ट ढंग से व्यक्त करने के योग्य बनना।
शुद्ध उच्चारण, उचित स्वर, उचित गति एवं हाव-भाव के साथ बोलना सीखना।
निसंकोच होकर अपने विचारों को व्यक्त करने के योग्य बनना।
परस्पर वार्तालाप करने के योग्य बनना।
धारा प्रवाह बोलने के योग्य बनना।
स्वाभाविक रूप से बोलने के भाव जागृत करना।
अपने विचारों को प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत करना।
आदर्श वाचन में अध्यापक अपने वाचन को गति, यति, आरोह-अवरोह, स्वराघात को ध्यान में रखकर कक्षा में प्रस्तुत करता है।
अध्यापक द्वारा आदर्शवाचन के उपरान्त छात्रों द्वारा कक्षा में अनुकरण किया जाता है। पाठ के भावानुसार वाचन पैदा करने की क्षमता विकसित करना तथा ओजपूर्ण एवं उच्च स्वर से शृंगार रस के शिक्षण का वाचन आदि होता है।
लिखित सामग्री को बिना आवाज निकाले पढ़ना मौन वाचन कहलाता है, मौन वाचन के माध्यम से छात्रों में स्वाध्याय की रूचि जागृत की जाती है।