हमारे हर मर्ज की दावा होती है माँ,
कभी डाट ती है हमे तो कभी गले लगा लेती है माँ|
हमारी आँखों के अंशु अपनी आँखों में समां लेती है माँ
अपने होठो की हंसी हम पर लुटा देती है माँ,
हमारी खुशियों में शामिल होकर अपने गम भुला देती है माँ|
जब भी कभी ठोकर लगे हमे याद आती है माँ,
दुनिया की तपिश में हमे अंचल की शीतल छाया देती है माँ|
खुद चाहे कितनी भी थकी हो हमे देख कर अपनी थकान भुला देती है माँ,
प्यार भरे हाथो से हमेशा हमारी थकान मिटा देती है माँ|
बात जब भी हो लज़ीज़ खाने की तो हमे याद आती है माँ,
रिस्तो को खूबसूरती से निभाहना सिखाती है माँ|
लफ्ज़ो मे जिसे बयां नहीं किया जा सके ऐसी होती है माँ,
भगवान भी जिसकी ममता के आगे छुक जाये ऐसी होती है माँ|