Wednesday, 24 October 2018

बाल दिवस

                             पौधों के पंख
नये पौधे
शहर भर में गये रौंदे

खुशबुओं के रास्तों से
शाह की गुज़री सवारी
आग की मीनार के नीचे
कुओं की खोज ज़ारी

गुंबजों की गूँज
सुनकर
काँपते रह-रह घरौंदे

एक नीली झील के तट पर
सुरंगों के मुहाने
धुआँ-देती आहटें हैं
फूल-पत्तों के ठिकाने

हाट भर में
बिक रहे हैं
नये सूरज के मसौदे























बाल दिवस

                          ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वॉर्मिंग से गरमाती धरती,
ग्लेशियर पिघल रहे, घबराती धरती।
 
वायुमंडल हो रहा सारा ही दूषित, 
उथल-पुथल है भीतर बतलाती धरती।
 
ग्रीन हाउस गैसों से बढ़ रहा खतरा,
सभी की चाहत है मुस्कुराती धरती।
 
कहीं बाढ़, कहीं सूखा, रंग दिखलाता,
खून के आंसू भीतर बहाती धरती।
 
सुनामी का तांडव कहीं लील न जाए,
बचा लो तटों को, पाठ पढ़ाती धरती।
 
अंधाधुंध न काटो, बढ़ाओ वृक्षों को,
पर्यावरण बचा लो समझाती धरती।