हिमश्रृंगी काँधे पर मुस्कुराकर चढ़ने लगी धूप,
अकड़े फैले कुहासे को बाँहों में समेटने लगी धूप,
इंद्रधनुषी गठजोड़ से धरा ले रही फेरे गगन संग,
प्रेम ऊष्मा भरी भावनाओं में पिघलने लगी धूप,
अंगड़ाई लेते वृक्ष इठलाती पत्तियां चहकते पंछी,
निखरती सजती प्रकृति पर दृष्टि रखने लगी धूप,
लाल पीले वसन पहनाती रंगीन तितली सी फिरकती,
फूलों के गहनो से आशा मधुमास बुलाने लगी धूप,
कृष्ण को पुकारती निशा अश्रु पोंछती कलुषता हरती,
राधा सी मोहनी फेरती बंसी धुन पे थिरकने लगी धूप,
सूर्या चला उत्तरायण हिरणी सी उछल खूब इतराई,
पतंगों संग मकर संक्रांति के तिल सी चटकने लगी धूप,
अकड़े फैले कुहासे को बाँहों में समेटने लगी धूप,
इंद्रधनुषी गठजोड़ से धरा ले रही फेरे गगन संग,
प्रेम ऊष्मा भरी भावनाओं में पिघलने लगी धूप,
अंगड़ाई लेते वृक्ष इठलाती पत्तियां चहकते पंछी,
निखरती सजती प्रकृति पर दृष्टि रखने लगी धूप,
लाल पीले वसन पहनाती रंगीन तितली सी फिरकती,
फूलों के गहनो से आशा मधुमास बुलाने लगी धूप,
कृष्ण को पुकारती निशा अश्रु पोंछती कलुषता हरती,
राधा सी मोहनी फेरती बंसी धुन पे थिरकने लगी धूप,
सूर्या चला उत्तरायण हिरणी सी उछल खूब इतराई,
पतंगों संग मकर संक्रांति के तिल सी चटकने लगी धूप,
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