Friday, 26 January 2018

Republic day






माह जनवरी छब्बीस को हम
सब गणतंत्र मनाते 
और तिरंगे को फहरा कर,
गीत ख़ुशी के गाते ||
संविधान आजादी वाला,
बच्चो ! इस दिन आया |
इसने दुनिया में भारत को,
नव गणतंत्र बनाया ||
क्या करना है और नही क्या ?
संविधान बतलाता |
भारत में रहने वालों का,
इससे गहरा नाता ||
यह अधिकार हमें देता है,
उन्नति करने वाला |
ऊँच-नीच का भेद न करता,
पण्डित हो या लाला ||
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
सब हैं भाई-भाई |
सबसे पहले संविधान ने,
बात यही बतलाई ||
इसके बाद बतायी बातें,
जन-जन के हित वाली |
पढ़ने में ये सब लगती हैं,
बातें बड़ी निराली ||
लेकर शिक्षा कहीं, कभी भी,
ऊँचे पद पा सकते |
और बढ़ा व्यापार नियम से,
दुनिया में छा सकते ||
देश हमारा, रहें कहीं हम,
काम सभी कर सकते |
पंचायत से एम.पी. तक का,
हम चुनाव लड़ सकते ||
लेकर सत्ता संविधान से,
शक्तिमान हो सकते |
और देश की इस धरती पर,
जो चाहे कर सकते ||
लेकिन संविधान को पढ़कर,
मानवता को जाने |
अधिकारों के साथ जुड़ें,6
कर्तव्यों को पहचानो ||

Sunday, 14 January 2018

मकर सक्रांति

हिमश्रृंगी काँधे पर मुस्कुराकर चढ़ने लगी धूप,
अकड़े फैले कुहासे को बाँहों में समेटने लगी धूप,
इंद्रधनुषी गठजोड़ से धरा ले रही फेरे गगन संग,
प्रेम ऊष्मा भरी भावनाओं में पिघलने लगी धूप,
अंगड़ाई लेते वृक्ष इठलाती पत्तियां चहकते पंछी,
निखरती सजती प्रकृति पर दृष्टि रखने लगी धूप,
लाल पीले वसन पहनाती रंगीन तितली सी फिरकती,
फूलों के गहनो से आशा मधुमास बुलाने लगी धूप,
कृष्ण को पुकारती निशा अश्रु पोंछती कलुषता हरती,
राधा सी मोहनी फेरती बंसी धुन पे थिरकने लगी धूप,
सूर्या चला उत्तरायण हिरणी सी उछल खूब इतराई,
पतंगों संग मकर संक्रांति के तिल सी चटकने लगी धूप,

Wednesday, 10 January 2018

नव वर्ष


कुछ नया होता है..
कुछ पुराना पीछे रह जाता है;
कुछ ख्वाईशैं दिल मैं रह जाती हैं..
कुछ बिन मांगे मिल जाती हैं;
कुछ छौड कर चले गये..
कुछ नये जुड़ेंगे इस सफर मैं ..
कुछ मुझसे खफा हैं..
कुछ मुझसे बहुत खुश हैं..
कुछ मुझे भूल गये…
कुछ मुझे याद करते है…
कुछ शायद अनजान है…
कुछ बहुत परेशान है…
कुछ को मेरा इंतज़ार है…
कुछ का मुझे इंतज़ार है…
कुछ सही है….
कुछ गलत भी है….
कोई गलती तो माफ़ कीजिये….
और कुछ अच्छा लगे तो याद कीजिये