Monday, 25 December 2017
क्रिसमस
आओ बच्चो! तुम्हें सुनाएँ, गाथा एक पुरानी।
पुभु र्इसा कैसे जन्मे थे? इसकी सुनो कहानी।
'यूसुफ और 'मारिया के घर, प्रभु का बेटा आया।
आते ही उसने 'बेथेलहेम, चमत्कार दिखलाया।।
एक सितारा अदभुत चमका, धर्मगुरू ने जाना।
ये तो बेथेलहेम का राजा, ज्योतिष से पहचाना।
खबर हो गयी बादशाह को, काँप उठा वह डर से।
मरवा डाले सारे बच्चे, खींच- खींच कर घर से।।
लेकिन 'नाजेरथ का र्इसा, मार नहीं वह पाया।
बाद मृत्यु के बादशाह की, 'नाजेरथ वह आया।
होकर युवा काम बढ़र्इ का, संग पिता के करता।
और सभी में पे्रम दया की, मधुर भावना भरता।
एक दिवस 'मर्दन के तट पर, 'योहन से टकराया।
दिव्य अलौकिक शकित प्राप्त कर, छोड़ी सारी माया।
पे्रम और मानवता का वह, ज्ञान सभी को देता।
घूम- घूम कर इधर उधर वह, सबके दुख हर लेता।
र्इश्वर समझा सबने उसको, तो 'कैफस घबराया।
कर षड़यंत्र यीशु को उसने, सूली पर लटकाया।।
सत्ताइस सौ वर्ष हो गये, भूल नहीं हम पाते।
जन्म दिवस आते ही उसका, सौ- सौ दीप जलाते।
पुभु र्इसा कैसे जन्मे थे? इसकी सुनो कहानी।
'यूसुफ और 'मारिया के घर, प्रभु का बेटा आया।
आते ही उसने 'बेथेलहेम, चमत्कार दिखलाया।।
एक सितारा अदभुत चमका, धर्मगुरू ने जाना।
ये तो बेथेलहेम का राजा, ज्योतिष से पहचाना।
खबर हो गयी बादशाह को, काँप उठा वह डर से।
मरवा डाले सारे बच्चे, खींच- खींच कर घर से।।
लेकिन 'नाजेरथ का र्इसा, मार नहीं वह पाया।
बाद मृत्यु के बादशाह की, 'नाजेरथ वह आया।
होकर युवा काम बढ़र्इ का, संग पिता के करता।
और सभी में पे्रम दया की, मधुर भावना भरता।
एक दिवस 'मर्दन के तट पर, 'योहन से टकराया।
दिव्य अलौकिक शकित प्राप्त कर, छोड़ी सारी माया।
पे्रम और मानवता का वह, ज्ञान सभी को देता।
घूम- घूम कर इधर उधर वह, सबके दुख हर लेता।
र्इश्वर समझा सबने उसको, तो 'कैफस घबराया।
कर षड़यंत्र यीशु को उसने, सूली पर लटकाया।।
सत्ताइस सौ वर्ष हो गये, भूल नहीं हम पाते।
जन्म दिवस आते ही उसका, सौ- सौ दीप जलाते।
Tuesday, 19 December 2017
नोबल पुरस्कार कविता
*नोबेल पुरस्कार विजेता ब्राजीली कवियत्री मार्था मेरिडोस की कविता "You Start Dying Slowly" का हिन्दी अनुवाद..*
1) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- करते नहीं कोई यात्रा,
- पढ़ते नहीं कोई किताब,
- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
- करते नहीं किसी की तारीफ़।
2) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:*
- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।
3) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।
4) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।
5) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
*तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!*
*इसी कविता के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। *
1) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- करते नहीं कोई यात्रा,
- पढ़ते नहीं कोई किताब,
- सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,
- करते नहीं किसी की तारीफ़।
2) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप:*
- मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,
- नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।
3) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के,
- चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,
- नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,
- नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या
- आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।
4) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।
5) *आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप:*
- नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,
- अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,
- अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,
- अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।
*तब आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं..!!*
*इसी कविता के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ। *
Monday, 18 December 2017
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