Thursday, 31 August 2017

Daily log

Class V Reading of chapter  Ye baat smajh me aye nhai .(cw)
Class VI Written practice of bhasha abhyas work (cw /hw)
Class VII  Bhasha abhyas (cw/hw)
ClassVIII Adverb and types of adverb (cw) 

Wednesday, 30 August 2017

Daily log

Class V  oral practice of noun sentences (cw)
Class VI  ved path paper held (cw)
complete bhasha abhyas (hw)
Class VII abhyas sagar (cw)
complete abhyas sagar (hw)
Class VIII  Informal letter and abhyas sagar (cw)
complete abhyas sagar (hw)

Tuesday, 29 August 2017

Daily log (29.8.17)

Class 5- Revision of grammar- nouns and pronouns (cw)
               complete pending work and write 5 sentences of pronouns (hw)

Class 6- Revision of ved path (cw)

Class 7- Question and Answers of Us Raat Ki Baat (cw)
             Complete  Practice Book (hw)

Class 8- Ch. 1 Q/Ans. (cw)
              Complete remaining questions (hw)
           

Monday, 28 August 2017

Class work/ Home work [28.08.2017]

Class work
Class 5th to 7th : Sample Paper

Class Work
Class 8th: Question Answers

Home Work
Class 8th: Informal Letter

Sunday, 6 August 2017

Hindi Story of Rakhi (Raksha bandhan)

राखी के पर्व की शुरुआत कब से हुई इसकी कोई निश्चित जानकारी तो नहीं है पर पुराणों में इस पर्व से सम्बंधित कुछ कथाएं है जो हम आज आपको बातएंगे।  इसके अलावा हम आपको इतिहास की वो अमर कहानी भी बातएंगे जब मेवाड़ की राजपूत रानी कर्णावती द्वारा भेजी गई राखी का मान रखते हुए मुग़ल शासक हुमायूँ ने कर्णावती की और उसके राज्य की रक्षा की थी।
Hindi Story of Rakhi (Raksha bandhan)

जब लक्ष्मी जी ने दानवराज बलि के राखी बाँध द्वारपाल बने विष्णु जी को कराया मुक्त :
पुराणों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व लक्ष्मी जी का बली को राखी बांधने से जुडा हुआ है। इसके लिए पुराणों में एक कथा है जो इस प्रकार है – जब दानवो के राजा बलि ने अपने सौ यज्ञ पुरे कर लिए तो उन्होंने चाहा कि उसे स्वर्ग की प्राप्ति हो, राजा बलि कि इस मनोइच्छा का भान देव इन्द्र को होने पर, देव राज इन्द्र का सिहांसन डोलने लगा।
जब देवराज इंद्र को कोई उपाय नहीं सुझा तो वो घबरा कर भगवान विष्णु की शरण में गयें, और बलि की मंशा बताई तथा उन्हें इस समस्या का निदान करने को कहा। देवराज इंद्र की बात सुनकर भगवान विष्णु वामन अवतार ले, ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंच गयें क्योंकि राजा बलि अपने दिए गए वचन को हर हाल में पूरा करते थे। जब राज बलि ने ब्राह्माण बने श्री विष्णु से कुछ माँगने को कहां तो उन्होंने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। राजा बलि ने उन्हें तीन पग भूमि दान में देते हुए कहां की आप अपने तीन पग नाप ले।
वामन रुप में भगवान ने एक पग में स्वर्ग ओर दुसरे पग में पृ्थ्वी को नाप लिया। अभी तीसरा पैर रखना शेष   था। बलि के सामने संकट उत्पन्न हो गया। आखिरकार उसने अपना सिर भगवान के आगे कर दिया और कहां तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए। वामन भगवान ने ठिक वैसा ही किया, श्री विष्णु के पैर रखते ही, राजा बलि पाताल लोक पहुंच गए।
बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर, भगवान विष्णु अत्यन्त खुश हुए, उन्होंने आग्रह किया कि राजा बलि उनसे कुछ मांग लें। इसके बदले में बलि ने रात दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया, श्री विष्णु को अपना वचन का पालन करते हुए, राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा। जब यह बात लक्ष्मी जी को पता चली तो उन्होंने नारद जी को बुलाया और इस समस्या का समाधान पूछा।  नारद जी ने उन्हें उपाय बताया की आप राजा बलि को राखी बाँध कर उन्हें अपना भाई बना ले और उपहार में अपने पति भगवन विष्णु को मांग ले। लक्ष्मी जी ने ऐसा ही किया उन्होंने राजा बलि को राखी बाँध कर अपना भाई बनाया और जब राजा बलि ने उनसे उपहार मांगने को कहाँ तो उन्होंने अपने पति विष्णु को उपहार में मांग लिया। जिस दिन लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बाँधी उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी।  कहते है की उस दिन से ही राखी का तयौहार मनाया जाने लगा।
जब इन्द्राणी ने बाँधा देवराज इंद्र को रक्षा सूत्र :
रक्षाबंधन से जुडी सबसे प्राचीन कथा  देवराज इंद्र से सम्बंधित है, जिसका की भविष्य पुराण में उल्लेख है। इसके अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में कई दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ जिसमे की देवताओं की हार होने लगी, यह सब देखकर देवराज इंद्र बड़े निराश हुए तब इंद्र की पत्नी शचि ने विधान पूर्वक एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को ब्राह्मणो द्वारा देवराज इंद्र के हाथ पर बंधवाया जिसके प्रभाव से इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तभी से यह “रक्षा बंधन” पर्व ब्राह्मणों के माध्यम से मनाया जाने लगा। आज भी भारत के कई हिस्सों में रक्षा बंधन के पर्व पर ब्राह्मणों से राक्षसूत्र बंधवाने का रिवाज़ है।
महाभारत में द्वौपदी का श्री कृ्ष्ण को राखी बांधना:
रक्षाबंधन से जुड़ा एक प्रसंग महाभारत में भी आता है। महाभारत में कृष्ण ने शिशुपाल का वध अपने चक्र से किया था। शिशुपाल का सिर काटने के बाद जब चक्र वापस कृष्ण के पास आया तो उस समय कृष्ण की उंगली कट गई भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साडी़ का किनारा फाड़ कर कृष्ण की उंगली में बांधा था, जिसको लेकर कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। इसी ऋण को चुकाने के लिए दु:शासन द्वारा चीरहरण करते समय कृष्ण ने द्रौपदी की लाज रखी। तब से ‘रक्षाबंधन’ का पर्व मनाने का चलन चला आ रहा है।
हुमायूं ने की थी रानी कर्णावती की रक्षा :
Maharani karnawati

महारानी कर्णावती
मध्यकालीन युग में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। रानी कर्णावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली तो वह घबरा गई। रानी कर्णावती, बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में असमर्थ थी। अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी। हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंच कर बहादुरशाह के विरुद्घ मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्णावती और उसके राज्य की रक्षा की। दरअसल, हुमायूं उस समय बंगाल पर चढ़ाई करने जा रहा था लेकिन रानी के और मेवार की रक्षा के लिए अपने अभियान को बीच में ही छोड़ दिया।

HAPPY RAKSHA BANDHAN !!